गाँव की शाम थी। हल्की-हल्की हवा चल रही थी, और चारों तरफ़ सन्नाटा फैला हुआ था। खेत से काम करके मैं थका हुआ घर आया। घर पर सिर्फ़ मेरी चाची थीं, क्योंकि चाचा शहर गए हुए थे।
मैं नहाकर आँगन में चारपाई पर बैठा ही था कि चाची पानी का लोटा लेकर आईं। हल्की रोशनी में उनका गीला पल्लू शरीर से चिपक रहा था। मैं अनजाने में ही उन्हें देखने लगा।
चाची ने मुस्कुराते हुए कहा –
“क्या देख रहे हो बेटा? ऐसे घूरते क्यों हो?”
मैं घबरा गया और बोला –
“न-नहीं चाची, बस ऐसे ही…”
वो हँस दीं। उनकी हँसी में एक अलग खिंचाव था, जो मुझे भीतर तक हिला गया।
रात को खाना खाने के बाद बिजली चली गई। अंधेरा था, सिर्फ़ दीये की लौ जल रही थी। मैं चारपाई पर लेटा था और चाची बगल में बैठकर पंखा झल रही थीं।
हर बार पंखा झलते हुए उनका हाथ मेरे पैरों को छू जाता। दिल की धड़कन तेज़ हो गई। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये सब जानबूझकर हो रहा है या यूँ ही।
थोड़ी देर बाद चाची बोलीं –
“गर्मी बहुत है, नींद भी नहीं आ रही… तुम चाहो तो आँगन में लेट जाओ।”
मैंने धीरे से कहा –
“अगर आप भी साथ चलें तो अच्छा लगेगा।”
वो मुस्कुराई और बोलीं –
“तुम बड़े शरारती हो गए हो।”
हम दोनों आँगन में चले गए। चाँदनी सीधी उनके चेहरे पर पड़ रही थी। मैं उन्हें लगातार देखे जा रहा था।
उन्होंने नोटिस किया और धीरे से बोलीं –
“तुम्हारी नज़रें बहुत बदल गई हैं… जैसे मुझसे कुछ कहना चाहती हों।”
मैं हिम्मत करके बोला –
“चाची, पता नहीं क्यों… जब आप पास होती हो तो दिल बहुत तेज़ धड़कता है।”
कुछ पल सन्नाटा रहा। फिर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढ़ाया और मेरी उँगलियाँ थाम लीं। उस स्पर्श में एक अजीब-सा करंट था
अब हमारे बीच कोई दूरी नहीं बची थी। मैं धीरे-धीरे उनके और करीब गया। उनका पल्लू फिसलकर कंधे से नीचे आ गया। उनके सीने की हल्की-हल्की साँसें मुझे और बेचैन कर रही थीं।
मैंने काँपते हुए हाथ से उनका गाल छुआ। वो आँखें बंद करके बस मुस्कुराईं।
चाची ने धीरे से कहा –
“अगर ये गलती है… तो आज मुझे भी ये गलती करने दो।”
ये सुनते ही मैंने उन्हें बाहों में भर लिया। हमारी साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं। वो मेरे सीने पर सिर रखकर चुप हो गईं। धीरे-धीरे उनका हाथ मेरे पेट से होते हुए नीचे आया और मेरे लंड को हल्के से छुआ। मैं काँप गया।
मैंने भी हिम्मत करके उनके पैर के पास हाथ ले जाकर उनकी चुत पर उँगलियाँ फेर दीं।
वो हल्की सी कराह निकालीं और मेरी ओर और कसकर लिपट गईं। 2. आँगन की रात और भी गहरी हो चुकी थी। चाँदनी अब और भी साफ़ दिख रही थी। मैं और चाची एक-दूसरे की बाहों में बंधे थे। उनकी साँसें गर्म थीं और मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
चाची ने धीरे-धीरे मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू किए। उनकी उँगलियाँ काँप रही थीं, लेकिन आँखों में अजीब-सी चमक थी।
“तुम्हें पता है… मैं कितने दिनों से इस पल का इंतज़ार कर रही थी।”
ये सुनकर मेरा सारा डर गायब हो गया। मैंने उनकी साड़ी का पल्लू हटाया। अंदर उनका ब्लाउज भी पसीने से गीला था। मैंने झुककर उनकी गर्दन पर होंठ रख दिए। वो हल्के से कराह उठीं –
“आह्ह्ह… धीरे बेटा…”
लेकिन मैं अब रुकने वाला नहीं था।
मैंने चाची को चारपाई पर लिटाया और उनकी साड़ी धीरे-धीरे खोल दी। नीचे उनका पेट झिलमिला रहा था। मैं नीचे की ओर बढ़ा और जैसे ही उनकी चुत पर हाथ रखा, उन्होंने मेरे बाल पकड़ लिए और ज़ोर से दबाकर बोलीं –
“बस, वहीं छूते रहो… बहुत अच्छा लग रहा है।”
उनकी चुत पहले से गीली थी। मैंने उँगलियों से हल्की मालिश की और वो हर बार ज़ोर से सिसकारियाँ भर रही थीं।
अब बारी मेरी थी। उन्होंने मेरे पायजामे की डोरी खोली और मेरा लंड बाहर निकाल लिया। उनके हाथों की पकड़ इतनी गर्म और मुलायम थी कि मैं वहीं बेहोश हो जाता।
“इतना बड़ा… तुमने अब तक कैसे छुपाकर रखा…” – वो हँसते हुए बोलीं और धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगीं।
मैंने उनकी टाँगें अलग कीं और अपना लंड उनकी चुत पर रगड़ने लगा। वो और भी ज़्यादा भीग चुकी थीं।
“डाल दो ना अंदर… और मत तड़पाओ…” – चाची ने मेरी कमर पकड़कर खुद खींच लिया।
एक झटके में मेरा लंड उनकी चुत में घुस गया। वो ज़ोर से कराह उठीं –
“आह्ह्ह बेटा… धीरे… फट जाऊँगी…”
मैंने रुककर धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। हर धक्के पर उनके होंठों से सिसकारियाँ निकल रही थीं।
अब मैं रुक ही नहीं पा रहा था। मैंने रफ़्तार तेज़ कर दी। चारपाई चरमरा रही थी, और उनकी आवाज़ पूरे आँगन में गूंज रही थी।
“हाँ… हाँ… ऐसे ही… और ज़ोर से… आह्ह्ह…”
उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर गड़ गईं। मैं पागलों की तरह उनकी चुत में अपना लंड ठोक रहा था।
कुछ देर बाद उन्होंने मेरे बाल पकड़कर कसकर दबाया और ज़ोर से चिल्लाईं –
“बस्स… आह्ह्ह… निकल रहा है…”
उनका पूरा शरीर काँप उठा। उसी पल मैं भी फट पड़ा और अपना सारा गर्म लावा उनकी चुत के अंदर छोड़ दिया।
दोनों पसीने से भीगे हुए, हाँफते-कराहते चारपाई पर ढेर हो गए।
कुछ देर चुप्पी रही। फिर चाची ने मेरे सीने पर सिर रखकर मुस्कुराते हुए कहा –
“आज से तू सिर्फ़ मेरा है… चाहे दुनिया कुछ भी कहे।”
मैंने उन्हें कसकर बाँहों में भर लिया।
कहानी किसी लगी कमेंट बॉक्स मै जरूर बताए नेक्स्ट पार्ट जल्दी आएगा।