गाँव का सुकून भरा माहौल था। चारों तरफ़ खेत–खलिहान, हवा में मिट्टी की खुशबू और रात को झींगुरों की आवाज़। ऐसे माहौल में ही मैं अपने घर आया था, गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने। शहर की पढ़ाई से ऊब चुका था और अब सिर्फ़ आराम करना चाहता था।
घर में मेरी छोटी बहन गुंजन थी। उम्र करीब 19 साल। वह अब बड़ी हो चुकी थी, लेकिन उसकी मासूमियत अभी भी वैसी ही थी। रंग गोरा, काले लंबे बाल और पतली कमर। अक्सर वह घर के आँगन में दुपट्टा ढीला करके काम करती थी।
शाम को जब मैं खेत से लौटता तो देखता कि वह मटके से पानी भर रही होती। पसीने की बूँदें उसके चेहरे और गर्दन पर चमक रही होतीं। कभी उसका दुपट्टा खिसक जाता और हल्की सी झलक मिल जाती।
मैं उसे बस चुपचाप देखता, मन में हलचल मच जाती। लेकिन कुछ बोलता नहीं।
एक रात की बात है। घर में सब सो गए थे। पंखे की हवा धीमी थी और गर्मी ज़्यादा। मैं खाट पर करवटें बदल रहा था। तभी बहन पानी पीने के लिए उठी। वह हल्के से कमरे में आई और बोली –
“भैया, नींद नहीं आ रही क्या?”
मैं मुस्कुरा दिया –
“बहुत गर्मी है, तू भी नहीं सो पा रही?”
वह बोली –
“हाँ, घुटन सी हो रही है…”
उसकी आवाज़ धीमी थी, और वह पास वाली चारपाई पर आकर बैठ गई। उसके आने से मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसका दुपट्टा थोड़ा सरक चुका था और उसकी गा की हल्की सी झलक मुझे पागल कर रही थी।
हम दोनों धीरे–धीरे बात करने लगे। बातों–बातों में मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वह चौंकी, लेकिन छुड़ाया नहीं।
मैंने हिम्मत करके उसके गाल पर हाथ रखा और बोला –
“तू बहुत बदल गई है, अब तो बिल्कुल बड़ी लगती है।”
उसने बस हल्की सी मुस्कान दी।
फिर मैं धीरे–धीरे उसके कान के पास गया। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
मैंने उसके बालों को सहलाया और पहली बार उसकी गर्दन पर होंठ रख दिए।
वह हल्के से सिहर गई –
“भैया… ये ठीक नहीं है…”
लेकिन उसके लहज़े में ना से ज़्यादा चाहत थी।
मैंने धीरे–धीरे उसके सीने की ओर हाथ बढ़ाया। दुपट्टे के ऊपर से ही सहलाने लगा। वह काँप उठी, मगर रोक नहीं पाई।
उसके होंठ से हल्की–सी सिसकारी निकली।
अब तो मेरा काबू छूट रहा था। मैंने दुपट्टा हटाया और उसकी चूचियां पर हल्की पकड़ बनाई। वह आँखें बंद करके बस मेरी बाहों में समा गई।
उसका बदन तप रहा था और मैं उसे कसकर अपनी ओर खींच रहा था। उस रात आँगन की हल्की-सी रोशनी में हम दोनों खाट पर बैठे थे। बहन का चेहरा शर्म से लाल था, पर उसकी आँखों में वही छुपी हुई चाहत साफ़ नज़र आ रही थी।
मैंने उसके होंठों को धीरे से चूम लिया। वह पहले तो पीछे हटी, लेकिन फिर मेरे सीने से लग गई। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
मैंने उसके गले से नीचे हाथ फिसलाया और उसकी चूचियों को सहलाने लगा। वह कांप गई और हल्की सी कराह निकली।
“भैया…” वह धीरे से बोली, “ऐसा मत करो… कोई देख लेगा।”
मैंने उसके कान में फुसफुसाया –
“सब सो रहे हैं… आज बस तू और मैं हैं।”
अब वह पूरी तरह पिघल चुकी थी। उसने अपने हाथों से मेरा गला पकड़ लिया और खुद मेरे करीब आ गई। उसकी गांड़ मेरे सीने से सट चुकी थी।
मैंने उसका दुपट्टा हटाकर ब्लाउज के ऊपर से दबाया।
वह आँखें बंद कर सिसकारी भर रही थी।
धीरे–धीरे मैंने उसकी सलवार की नाड़ी खोल दी। अब उसका बदन मेरे सामने खुल रहा था।
मैंने हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत पर हल्की पकड़ बनाई। वह ज़ोर से काँप उठी और खाट पकड़कर कराहने लगी।
“भैया… बस करो… प्लीज़…”
पर उसके लहज़े में विरोध नहीं, प्यास थी।
मैंने धीरे–धीरे उँगलियों से उसकी चूत को सहलाया। वह भी मेरी शर्ट पकड़कर मुझे अपने और पास खींच रही थी।
फिर मैं नीचे झुककर उसके पेट और नाभि पर होंठ फेरने लगा।
अब तक उसका बदन पूरी तरह बेकाबू हो चुका था। उसने खुद ही सलवार उतारकर किनारे कर दी।
मैंने उसे खाट पर लिटा दिया।
उसकी टाँगें काँप रही थीं। मैंने उसके पैर अलग किए और उसकी चूत पर होंठ रख दिए। और चूत को फैला के अंदर एक जीभ अंदर बार करने लगा और एक अंगुली चूत में अंदर बार करने लगा
वह ज़ोर से सिसकारी भरते हुए बोली –
“भैया… ओह… बस…”
उसकी आवाज़ धीमी और कराहों से भरी थी। रात और गहरी हो चुकी थी। चारों तरफ़ सन्नाटा था। बस हमारी खाट पर सिसकारियों और कराहों की आवाज़ गूंज रही थी।
मैं उसकी टाँगों के बीच था और उसकी चूत को होंठों से सहला रहा था। वह बार-बार मेरी बाल पकड़कर दबा रही थी।
“भैया… ओह… बस करो… मैं सह नहीं पा रही…”
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
मैंने अब खुद को रोकना बंद किया।
धीरे-धीरे मैंने अपना लन्ड उसकी चूत पर टिकाया।
वह डरते हुए बोली –
“नहीं भैया… ये नहीं…”
मैंने उसका माथा चूमते हुए कहा –
“डर मत… बस थोड़ी देर में तू खुद मुझसे माँगेगी।”
धीरे–धीरे मैंने उसे अंदर डाला।
वह जोर से कराह उठी और मेरी पीठ को नाखूनों से दबा दिया।
जैसे ही मैंने पहला झटका मारा, वह पूरी खाट हिल गई।
उसने मेरे कान में चीखकर कहा –
“भैया… धीरे… आह्ह…”
पर अब मेरा जोश काबू में नहीं था।
मैं बार-बार झटके मार रहा था और वह मेरी बाँहों में भीगती जा रही थी।
कुछ देर बाद मैंने उसे पलट दिया और चारों हाथ-पैरों पर झुका दिया।
अब उसकी गांड़ मेरे सामने थी। मैने गांड़ के छेद में अंगुली डाली और गांड़ चाटना शुरू कर दिया फिर
मैंने पीछे से उसका कमर पकड़ा और अपना लन्ड उसकी गांड़ में डाल दिया।
“ओह्ह भैया… मत करो… आह्ह्ह्ह…”
उसकी चीख पूरे कमरे में गूंज गई।
मैं पीछे से लगातार जोरदार झटके मार रहा था।
उसका बदन काँप रहा था और वह बार-बार खाट को पकड़ रही थी।
अब मैंने उसे फिर से सीधा किया और उसकी छाती पर गिर पड़ा।
मैंने उसके होंठों को दबाते हुए झटके और तेज़ कर दिए।
उसके पैरों की पकड़ मेरे बदन पर और मज़बूत हो गई।
वह पूरी तरह मेरे हवाले हो चुकी थी।
करीब आधा घंटा लगातार पोज़िशन बदल-बदल कर हमने किया –
कभी वह ऊपर आकर मेरे सीने पर बैठ जाती।
कभी मैं नीचे से उसकी चूत और गांड़ में गहराई तक झटके मारता।
कभी हम दोनों कसकर लिपट जाते।
आख़िरकार उसकी साँसें तेज़ हो गईं, पूरा बदन पसीने से भीग गया और वह ज़ोर से चीखते हुए मेरी बाँहों में थरथराने लगी।
मैं भी अब खुद को रोक नहीं पाया और उसके अंदर ही सारा गर्म प्यार उंडेल दिया।
दोनों थककर खाट पर गिर पड़े।
उसका चेहरा पसीने और शर्म से लाल था।
वह मेरे सीने पर सिर रखकर बोली –
“भैया… अब मैं कभी तुझसे दूर नहीं रह पाऊँगी।”
मैंने उसके बाल सहलाते हुए कहा –
“अब हम दोनों एक हो चुके हैं… ये राज़ सिर्फ़ हमारा है।”
उस रात हमने एक-दूसरे को बार-बार गले लगाया और सुबह तक खाट पर एक-दूसरे से चिपके सोए रहे।
दोस्तो कैसी लगी मेरी कहानी कमेंट बॉक्स मै जरूर बताए